वरध तकत. Aldivan Teixeira Torres
चलता गया और सभी जालों को देखा जिनसे मै बचने में कामयाब रहा और अचंभित हुआ की अगर लोग भरोसे, रास्ते और किस्मत के नहीं बने होते तो किसके बने होते। उनमे से कोई भी जाल को पार नहीं कर पाया क्योकि उनके पास सुरक्षा का जाल या रौशनी और ताकत नहीं थी। इंसान अगर अकेला है तो वह कुछ भी नहीं है। वह जब मानवता के ताकतों से जुड़ा होता है तभी वह खुद से कुछ कर पाता है। अगर वह ब्रम्हांड के साथ सामंजस्य में है तभी वह अपनी खुद की जगह बना सकता है। मुझे अब ऐसा ही महसूस हो रहा है: पूर्ण सामंजस्य में क्योकि मैं पहाड़ पर चढ़ा, तीन चुनैतियां जीतीं और मैंने गुफा को हरा दिया, वह गुफा जिसने मेरे सपने को सच कर दिया। मेरे चलने का अंत आ गया है क्योंकि मुझे गुफा के प्रवेश द्वार से रौशनी आती दिख रही है। थोड़ी देर में मैं बाहर होऊंगा।
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